lockdown के सायकोलोजिकल  इफैक्ट मानव मन पर
            चारो तरफ जब वैश्विक महामारी की बाते हो रही है । तो यूथ की कलम उससे क्यू पीछे रहे ।
सारे विश्व मे भारत चीन इटली फ़्रांस और अन्य कई बड़े देशो मे इस महामारी का कहर फैला है। जिसके चलते अब सारे भारतमे लोक डाउन घोषित किया है ।


 जिसके चलते सारा देश एक साथ घर के अंदर बंद हो चुका है । ये हम सभी जानते है ।


 लेकिन मुद्दे की बात यह है की क्या हम ये जानते  है की मनुष्य का दिमाग एक ही परिस्थिति मे नहीं रह सकता
अगर मनुष्य के दिमाग को एक ही परिस्थिति मे रखा जाए तो वो जैसी परिस्थिति है उसके अनुकूल या उसके साथ ही ढल जाता है। इसे एक एक्जाम्पल से  समजते है, 
आप सब ने ये कहावत तो सुनी ही होगी की जैसा रंग वैसा ढंग , मनुष्य किसी भी उम्र मे अगर पूर्ण वातावरण के विपरीत किसी दूसरी परिस्थिति या वातावरण  मे चला जाता है तो, उस परिस्थिति मे उसका दिमाग वर्तमान परिस्थिति मे ढल जाता है। 
एक प्रयोग के तौर पर समझते है की एक शहर मे रहने वाला व्यक्ति अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ गाव गया था ,  पहले पहल तो  जंगल पहाड़ शांत वातावरण उसे बहुत ही अच्छा लगा धीरे धीरे दिन बीतने लगे वहाँ की सुकून वाली शांति उसे शोक का चीर सन्नाटा लगने लगा ,  शहर का साफ़सुथरा रहने वाला दिन मे 4 बार हाथ मुह धोने वाला बंदा अब उसे दूर कुवे पर और नदी पर जाना पड़ता वाहा शहर मे तो बिस्तर के बगल मे ही वाशबेसिन रहता था । धीरे धीरे अब दूर कौन जाएगा कहने के साथ दिन मे 4 बार हाथ पैर धोना बंद होने लगा । चमड़ी पर खेत की धूल जमने लगी रूप रंग शहर वालों से हट के अब गाव वालो की तरह होने लगा । ज़्यादा काम  तो था नहीं इस लिए उन मुद्दो मे भी उलझने लगा जिसमे वो कभी उलझता नहीं था । इन शॉर्ट मॉरल ऑफ धी स्टोरी शहर का बंदा गाव की संगत मे एकदम देसी,देसी से स्वदेसी हो गया ।

इस स्टोरी से हम ये समज सकते है की वातावरण का असर हमारे मानव दिमाग पर कितना गंभीर असर होता है । अब  बात करे इस घरबंदी हाउस अरैस्ट लोक डाउन या आआइसोलेशन का मानव दिमाग पर क्या असर होगा । घर के अंदर सबसे पहले तो हम वो सारी चिजे करेंगे जिससे की हमारा टाइम पास हो जैसे की स्मार्ट फोन टीवी उसके बाद घर वालो से बातचीत हसी मज़ाक फिर बोर हो कर सो जाएंगे । यही नियम रहेगा थोड़े दिनो तक
               इंसानी दिमाग किसी भी चीज़ से जल्दी बोर हो जाता है । और उस चीज़ से अगर ध्यान दूसरी चीज़ पर शिफ्ट न किया जाए तो चिड़चिड़ा पन या डिप्रेशन आम बात है । शायद बहुत से लोगो ने इस चीज़ को आज़माया भी होगा, डबल्यूएचओ वर्ल्ड हेल्थ ओर्गेनाइजेशन की माने तो घर मे बंद रहना कोरोना का इलाज नहीं है हमे घरमे इस लिए बंद किया जा रहा है की जो तैयारी सरकार ने नहि की, वो तैयारी करने का सरकार को समय मिले और हम सुरक्षा साधनो के अंतर्गत बाहर घूमफिर सके। खैर अब बात करते है इस लोक डाउन  समान कैद से हमारे दिमाग पर होने वाली वीपरित असर की। क्यू की आआइसोलेशन या कैद मानव दिमाग को इस हद तक झँझोड़ देती है  की  मानव दिमाग कुछ  भी सोचने की कंडिशन मे नहीं रेहता।.......ये बात बिलकुल सच है की खाली दिमाग शैतान का घर होता है
। इस से जुड़े   वीडियो और आआइसोलेशन तथा न सोये जाने पर दिमाग कैसे खेल खेलता है । वो आपको यूट्यूब पर मिल जाएंगे उसी तरह जिस तरह भरे रेगिस्तान मे प्यास से झुलसते इंसान को मृगजल ,मिराज अर्थात सुकी रेत मे पानी ही पानी दिखता है । या जंगल मे भटके हुए इंसान को जो नहीं होती वो भी चिजे दिखाई देती हे । या किसी डरे हुए इंसान को रात के अंधेरे मे रस्सी भी साप लगती हे तो । ऐसे ही आइसोलेशन से . धीरे धीरे डिप्रेशन और चिड़चिड़ा पन  बढ्ने लगता है ।
                    आपने देखा होगा की आपके आस पड़ोस मे पहले दो तीन दिन तो लोग हसी मज़ाक करेंगे
पंछियो का गाना सुनेंगे फिल्मे  देखेंगे सोशियल मीडिया ओर चेट मे गपशप करेंगे फिर उसके बाद क्या ?
अगर कोई आस पड़ोस के लोग सफाई के बारे मे शोर के बारे मे या किसी भी मुद्दे पर एक दूसरे से लड़ते हुए दिखे या तो इसमे मुद्दा ओर कोई नहीं बस समजलेना ये सायकोलोजिकल मुद्दा है । जैसे आज के यंगस्टरस जल्दी ही किसी रिलेशनशिप से बोर हो जाते हे । सारी चिजे खत्म होने के बाद घूमने को या बाते करने को कोई चीज़ बचती नहीं है । इस लिए दोनों कही ओर लगे रहते है । फिर शक निर्माण होता हे ओर उसके बाद झगड़े ब्रेकअप , उसी तरह इंसानी दिमाग किसी भी चीज़ से बोर होने के बाद क्या हरकत करता है ये खुद इंसान भी नहीं जानता । जानता  है तो सिर्फ उससे होने वाला दुख या आउटपुट ।
                    क्यू की हमने  कभी इनपुट पर ध्यान कभी दिया ही नहीं । हमने ध्यान दिया है सिर्फ आने वाले रिज़ल्ट पे , और हमारी इसी मेंटालिटी को इस्तेमाल करके हमारा दिमाग हमारे साथ खेल खेल खेलता है ।
बहुत दिनो बाद अगर लगातार या एक बार भी इन
लोक डाऊन के चलते आया है कोई सपना

तो समज लीजिये की आपका दिमाग काफी सक्रिय है । क्यूँ की हमारा दिमाग हमे चलता है ।
विश्व विख्यात मनोवैज्ञानिक और स्वप्नविद सेग्मन फ़्रोइड का कहना है की “हर सपनों का कुछ मतलब होता है ।“
                    
हमारा दिमाग रूपी कम्प्युटर पास्ट और प्रेजंट का डाटा कलेक्ट कर के केलक्यूलेटर कर के ऐसा जैविक एल्गॉरिथ्म बनाता है जिससे फ्युचर का सटीक अनुमान लगाया जा सके या तो कहा जाए की फ्युचर मे होने वाली घटना की जानकारी पहले ही जुटा सके। वैसे ही जैसे केलक्यूलेटर को पता है की 1+1=2 ही होगा। और हमारा दिमाग तो कम्प्युटरों का भी कम्प्युटर है । सारे एल्गॉरिथ्म सारी करोड़ो अरबों समभावनए बखुभी जानता  है तो क्यू नहीं हमारे साथ जो हुआ ओर जो हो रहा है उसी के आधार पर उन करोड़ो संभावनाओ मेसे एक संभावना हमारा सटीक भविष्य हो सकती हे। जो नींद के दरमियान हमारी आंखो की डिस्प्ले पर दिखती है । लेकिन हमारा जागृत मन इसे  स्वीकार नहीं करता बिलकुल उसी की तरह जिस तरह हम करोड़ो का हिसाब कर रहे हे अपने केलकुलेटर पर और कोई इंसान आकार उसका जवाब बता दे । हम फिर भी उसे नकारेंगे और केलकुलेटर पर हिसाब करेंगे अगर उस इंसान का दिया हुआ जवाब ही केलकुलेटर ने बताया तो वो इंसान हमारे लिए जीनियस होगा हम इम्प्रेस हो जाएंगे ... तो खुश हो जाइए आप वही जीनियस है । उस जीनियस को खुद पर इस लिए भरोसा है क्यू की उसने प्रेक्टिस की होगी या तो वो केलकुलेटर से ज़्यादा जानता  होगा ।
तो हमे भी उतनी ही प्रेक्टिस करनी होगी और हमारे दिमाग के एल्गॉरिथ्म के साथ खेलना होगा । फिलहाल हमारा दिमाग हमे कंट्रोल कर रहा है । अगर हमे भी हमारे दिमाग की सारी गतिविधीया  समजनी है तो हमे इस को देखना होगा । इसे पहले शून्य करना होगा मतलब बंद करना होगा । किसी भी मशीन को आप  उसकी चालू कंडिशन मे नही देख सकते जैसे की अगर किसी कम्प्युटर या इंजन को अच्छी तरह से देखना है तो उसे पहले बंद करके सारे पुर्जो को देखना होगा बखूबी देखना होगा फिर धीरे धीरे चला कर देखना होगा की कोनसा पुर्जा किस काम मे आता है ॥ अब सवाल यही पैदा होता है

 अब ये करे कैसे?
           अब सवाल ये है की ये करने का सबसे आसान तरीका है । की रात को या किसी भी समय अगर चीर शांति हो तो अपनी आरामदायक स्थिति मे बैठ जाए और सिर्फ अपनी साँसो पर ध्यान केन्द्रित करे सांस आई ओर गई, कहते है न बड़ी चिजे छोटे से ही जुड़ी होती है दुनिया का सबसे बड़ा बम भी जाना जाता हे परमाणु के नाम से लेकिन परमाणु को अप अपनी आँख से नहीं देख सकते लेकिन वही परमाणु एक जुट हो कर पूरी दुनिया जलाने की ताकत रखता है । उसी तरह इस स्वसन क्रिया पर मन केन्द्रित  रखने की विधि को हम ध्यान, विपस्सना, कह सकते है । 
लोग कहते है की इसमे ज़्यादा समय लगेगा । जी हाँ लगेगा तो ज़रूर क्यू की एक कंप्यूटर को भी एक रूम जितनी जगह से हमारी हथेली तक आने के लिए 100 साल तो लग ही गए, लेकिन इसकी असर जल्दी ही शुरू हो जाएगी विज्ञान कहता है की किसी भी चीज़ को 21 दिनो तक करेंगे तो 22 वे दिन वो आपकी आदत बन जाएगी। समय और स्थान एक ही रहे तो हम अपना ध्यान केन्द्रित कर सकते है अपने दिमाग पर । पहले तो बिन फालतू के विचार आएंगे । उसे आने दे धीरे धीरे दिन बीतने के बाद विचार शून्य होते जाएंगे और असर आपको जल्दी ही मिलेगा यकीन मानिए क्यू की ये मन आपका ही है।
                               तो इस कैद नुमा आआइसोलेशन को अपने फ़ाईदे का सौदा बनाए नाकी नुकसान का
बस पॉज़िटिव सोच रखे । और यही सोचे की दूध फटने पर हमे दहि तो मिलेगा ही । ये न सोचे की दूध खराब हो गया तो उसकी चाय नहीं बनेगी । बल्कि ये सोचे की चलो चाय न सही हम लस्सी ही पी लेंगे पॉज़िटिव लोगो से अपनी बात शेर करे। ऐसे पॉज़िटिव आर्टिकल पढे और आप यहा तक आगए इसका मतलब आपने अपने मन को स्ट्रॉंग बनाने के आध्यात्मिक सफर पर चल पड़े है । खुद का गुरु खुद बने अपने मन पर काबू पाये और अपने जीवन मे जादु की तरह होने वाले वैज्ञानिक परिवर्तन यादशकती स्वप्न भविष्य   थर्ड आइ जेसे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक मार्ग पर आगे बढ़े अंधश्रद्धा से दूर रहे और इस अकेलेपन ओर आइसोलेशन का फाइदा ज़रूर उठाए क्यू की अगले 20 साल तक ऐसी शांति और आराम से घर रेह कर खुद पर विचार करने का और खुद को बेहतर बनाने का मौका नहीं मिलेगा ...अत्त दीप भव:
                                     D.I.PATIL

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